Diya Jethwani

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लेखनी प्रतियोगिता -13-Nov-2022.. माँ का आंचल..

छुट्न में जा रहा हूँ... स्कूल की घंटी बज गई...। 


अरे हरिया सुन तो... रुक तो सही..। 

लेकिन हरिया कहाँ रुकने वाला था... बिना अपने दोस्त छुट्न की तरफ़ देखे सिर पर पैर रखकर स्कूल की तरफ़ दौड़ने लगा..। 

साला.. इसका तो रोज का हैं... भागता तो ऐसे हैं जैसे उसके बिना स्कूल ही नहीं खुलेगा...। अभी उसका काम भी मुझे ही करना पड़ेगा...। नवाब आधे घंटे से पहले तो आने वाला नहीं...। कभी कभी तो दिल करता हैं साले को एक घुंसा मार दूं... पर क्या करु जिगरी यार हैं मेरा... मार भी तो नहीं सकता...। मेरी तो समझ में ये नहीं आता की पढ़ लिखकर कौनसा कलेक्टर बन जाएगा....। 
छुट्न अपने आप में ही बड़बड़ाता हुवा अपने काम में लगा हुआ था..। 

लेकिन उम्मीद के विपरीत आज दस मिनट में ही हरिया मुंह लटकाता हुआ वापस आया..। उसको देखकर छुट्न हैरान होते हुए बोला :- क्यूँ रे.... आज जल्दी आ गया... स्कूल की छुट्टी हो गई क्या..। या किसी ने डांटकर भगा दिया..। चल अच्छा हुआ जो तु आ गया.. आज यहाँ भी बहुत ग्राहक आएं हैं... चल जल्दी से काम पर लग जा... । 

हरिया मुंह लटकाएं बिना कुछ बोले काम पर लग गया...।
 वो दोनों दोस्त एक छोटी सी चाय की दुकान पर चाय बनाने, गिलास धोने, चाय देने तक का सारा काम करते थे..। कच्ची पक्की छोटी सी स्टाल थीं...। बैठने के लिए टायरों का इस्तेमाल करके कुर्सियां बनाई हुई थी..। पक्की छत की जगह सूखी लंबी घास का इस्तेमाल किया गया था...। दर असल वो दोनों सिर्फ इस दुकान पर काम करते थे..। दुकान का मालिक सवेरे चार बजे आकर दूध और बाकी जरूरत का सामान देकर जाता था.. और शाम चार बजे के बाद आकर हिसाब किताब करता ओर गल्ले पर बैठता.. । 
दुकान के मालिक सुजानसिंह को वो दोनों आज से पांच साल पहले एक सड़क पर रोते बिलखते चोरी करते हुए मिले थे..। भीड़ की मार से बचाकर वो उनको अपने साथ ले आए थे...।सुजानसिंह ने तब से उन दोनों को मुख्य सड़क पर ये चाय की छोटी सी दुकान खुलवाकर दी..। दोनों दोस्त पूरी ईमानदारी से वहाँ काम करते थे..। कभी भी एक रुपये की भी हेराफेरी नहीं करते थे...। उनकी इसी ईमानदारी की वजह से सुजानसिंह ने दुकान उनके हवाले ही कर दी थीं..। वो सिर्फ रोज़ खर्च जितना पैसा लेकर बाकी की हुई कमाई उन दोनों में आधी आधी बांट देते थे...। जिससे वो अपना खर्च उठाते थे..और अपने छोटे मोटे शोक भी पूरे करते थे.. जैसे त्योहार में नए कपड़े लेना... जूते लेना.. चश्मा लेना...। 
कुल मिलाकर वो अपनी जिंदगी में बहुत खुश थे....। ना ज्यादा बड़े शोक ना ज्यादा ऊंचे सपने..। लेकिन हरिया का रोजाना दुकान के पास बने स्कूल की घंटी पर भाग जाना छुट्न की समझ के बाहर था..। लेकिन दुकान को अकेला छोड़कर तो वो जा नहीं सकता था इसलिए उसने जब कभी हरिया से इस बारे में पूछा तो वो कहता की वो वहां अंग्रेजी सीखने जाता हैं...। स्कूल की एक कक्षा की खिड़की सड़क की तरफ खुली हुई होतीं हैं जहाँ से रोज उसी वक्त पर अंग्रेजी की कक्षा चलती हैं.. वो उसी खिड़की के बाहर बैठकर सुनता हैं और सीखता है...। ये सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा था...। लेकिन हरिया इस तरह मुंह लटकाकर और इतनी जल्दी कभी नहीं आया था...। 
छुट्न ने इस पर ज्यादा ध्यान ना देते हुवे अपने काम पर ध्यान लगाया..। शाम को सुजानसिंह हिसाब करने आया तो उसने भी हरिया का आज उतरा हुआ चेहरा नोटिस किया.... लेकिन पूछने पर उसने कुछ नहीं बताया..। सुजानसिंह भी रोज़ की तरह अपने वक्त पर घर चला गया..। 
अगली सुबह एक नई उम्मीद के साथ स्कूल की घंटी बजते ही हरिया फिर से छुट्न को बोलते हुवे भाग खड़ा हुआ..। 
लेकिन यह क्या आज फिर हरिया उदास मुंह लटकाकर आया और अपने काम में लग गया..। छुट्न के पूछने पर भी कोई जवाब नहीं आया..। 
तीसरे दिन फिर हरिया उसी तरह भागा... लेकिन आज छुट्न ने भी पहले से तैयारी कर रखी थीं ये जानने के लिए की आखिर हरिया स्कूल की घंटी बजते ही भाग क्यूँ जाता हैं..। छुट्न ने हरिया के जाते ही दुकान को कुछ देर के लिए पास में काम करने वाले अपने दोस्त के हवाले करके खुद भी छिप छिपाकर हरिया के पीछे हो लिया. . . । 

छुट्न ने देखा की हरिया स्कूल के बाहर आने जाने वाले वाहनों को देखने के लिए दीवार का सहारा लेकर छिपते हुवे जैसे किसी की राह देख रहा हैं..। स्कूल का दरवाजा बंद होने तक वो वही रहा फिर जैसे ही वो पलटा तो छुट्न उसके सामने आ गया..। 

क्या देख रहा था हरिया... किसका इंतजार कर रहा था... तेरी आंखों से साफ़ पता चल रहा हैं तु किसी खास के लिए यहाँ खड़ा हैं...। तु तो मुझसे कहता था तु छिपकर अंग्रेजी सीखता हैं...। तु मुझसे इतने समय तक झूठ बोल रहा था..! सच सच बता हरिया.. तु किसी गलत संगत में तो नहीं पड़ गया... वरना मैं मालिक को सब बता दुंगा... बोल जल्दी...। 

हरिया दीवार का टेका लेकर घुटनों के बल नीचे बैठ गया और बोला :- माँ... माँ का इंतजार कर रहा था....। लेकिन तीन दिन से वो आई ही नहीं.. । 

माँ.... किसकी माँ...?? 

मेरी माँ छुट्न.... मेरी माँ...। 

तेरी माँ.... तु पागल हो गया हैं क्या.... तेरी माँ अचानक कहाँ से आ गई..। 

मैं सच कह रहा हूँ छुट्न.... मैं एक दिन यहाँ स्कूल में चपरासी को चाय देने आया था..। तब एक बड़ी सी सफेद गाड़ी मे से मेरी माँ उतरी थीं...। उसने उस वक्त मुझे देखा और मेरे सिर पर हाथ फिरा कर अंदर चलीं गई....। उसके बाद मैं रोज़ उसी वक्त पर यहाँ आता हूँ और उनको गाड़ी से उतरते देखता हूँ...। एक दिन उन्होंने भी मुझे छिपते हुवे देख लिया... फिर उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और तबसे रोज़ वो मुझसे मिलती हैं... वो कहती हैं वो मेरी माँ हैं...। वो मुझे बहुत प्यार करतीं हैं...। मैं उससे बहुत सारी बातें करता हूँ... वो भी मुझसे बहुत सारी बातें करती हैं...। मैने माँ को तेरे बारे में भी बताया... माँ ने कहा था वो कभी समय मिलने पर तुझसे भी मिलेगी..। वो बहुत अच्छी हैं.... वो सच में मेरी माँ हैं...। वो मुझे चुमती हैं... मेरे साथ खेलती हैं...मुझे गले से लगाती हैं...। लेकिन तीन दिन से वो आ ही नहीं रहीं...। मेरा मन ही नहीं लगता उनके बिना...। 

हरिया तु भी ना पागल हो गया हैं...। अरे अमीर लोगों का तो ऐसा ही हैं .. उनके अंदर कोई दिल विल नहीं होता... वो अपने मतलब के लिए हम जैसे छोटे लोगों से मिलते ओर बात करते है...। जब तक उनका मन किया तब तक उसने तेरे से बात की जब मन भर गया तो छोड़ कर बिना कुछ बताए चलीं गई...। छोड़ दे तु भी उसको और भूल जा..। मालिक ने क्या हमें कम प्यार दिया हैं... अरे आज के जमाने में इतना कौन करता हैं...। उन्होंने जिम्मेदारी दी हैं... उनको दगा तो नहीं दे सकते ना... चल अभी दुकान चल और काम कर... काम में ध्यान लगा और खबरदार जो अब कभी इस तरफ़ आया... वरना मैं मालिक को सब बता दूंगा...। 

छुट्न हरिया का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ दुकान पर ले जाने लगा..। हरिया गर्दन नीचे किए... मुंह लटकाए... बोझिल मन से उसके साथ चल दिया...। दुकान के नजदीक पहुंचते ही हरिया दुकान में जाने लगा की उसने वहाँ कुर्सी पर बैठी एक औरत को देखा और छुट्न से हाथ छुड़ाकर जोर से चिल्लाया :- माँ.... माँ.... 
वो बेसुध सा दौड़ता हुआ उनके सीने से जा लगा...। अनायास ही उसकी आंखों से आंसू की धार बहनें लगी...। रोते रोते वो बोला :- आप कहाँ चली गई थी माँ.... आप कहाँ चलीं गई थी...!! 

उस औरत ने उसके आंसू पोंछते हुवे कहा :- माफ़ करना बेटा... कुछ दिनों से तबियत ठीक नहीं थी... इसलिए स्कूल नहीं आ पाई... लेकिन आज यहाँ आ गई... अब ऐसे ही रोते रहोगे या अपने दोस्त से भी मिलवाओगे...। हरिया ने झट से आंसू पोंछते हुवे छुट्न की बांह पकड़ी और उसे खींचते हुवे उनके पास लाकर बोला :- देख छुट्न.... मैने कहा था ना मेरी माँ हैं... देख देख....। 

 छुट्न हरिया को ऐसे खुश देखकर बस मुस्कुराए जा रहा था...। तभी वो औरत उठी और छुट्न के सिर पर हाथ फेरकर कहा :- सिर्फ इसकी नहीं आज से मैं तेरी भी माँ हूँ...। मुझे अपनी माँ बनाओगे ना...? 

छुट्न आज पहली बार इस तरह के स्पर्श को महसूस कर रहा था...। वो बिना कुछ बोले उस औरत के आंचल में सिमट गया और कहा :- हां माँ...। 

माँ का प्यार और माँ का आंचल क्या होता हैं शायद वो आज पहली बार महसूस कर रहा था...। 

किसी ने सच ही कहा...
 चलती फिरती आंखों से मैने अजां देखी हैं... 
 मैने जन्नत तो नहीं देखी पर माँ देखी हैं....।। 
             

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10 Comments

Palak chopra

15-Nov-2022 01:50 PM

Shandar 🌸

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Rajesh rajesh

15-Nov-2022 12:49 AM

बहुत अच्छी कहानी

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Gunjan Kamal

14-Nov-2022 08:03 PM

बहुत ही सुन्दर

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